नृत्य

भारत के नृत्य

नृत्य का इतिहास, मानव इतिहास जितना ही पुराना है। इसका का प्राचीनतम ग्रंथ भरत मुनि का नाट्यशास्त्र है। लेकिन इसके उल्लेख वेदों में भी मिलते हैं, जिससे पता चलता है कि प्रागैतिहासिक काल में नृत्य की खोज हो चुकी थी। इस काल में मानव जंगलों में स्वतंत्र विचरता था। धीरे-धीरे उसने समूह में पानी के स्रोतों और शिकार बहुल क्षेत्र में टिक कर रहना आरंभ किया- उस समय उसकी सर्वप्रथम समस्या भोजन की होती थी- जिसकी पूर्ति के बाद वह हर्षोल्लास के साथ उछल कूद कर आग के चारों ओर नृत्य किया करते थे। ये मानव विपदाओं से भयभीत हो जाते थे- जिनके निराकरण हेतु इन्होंने किसी अदृश्य दैविक शक्ति का अनुमान लगाया होगा तथा उस Read More : भारत के नृत्य about भारत के नृत्य

भारत के शास्त्रीय व लोक नृत्य

शास्त्रीय व लोक नृत्य
शास्त्रीय नृत्य राज्य
भरतनाट्यम तमिलनाडु
कथकली केरल
मोहिनीअट्टम केरल
ओडिसी उड़ीसा
कुचिपुड़ी आंध्र प्रदेश
मणिपुरी मणिपुर
कथक उत्तर भारत मुख्य रूप से यू.पी.
सत्त्रिया नृत्य असम

ओड़िसी― ओड़िसा

ओड़िसी

ओड़िसी को पुरातात्विक साक्ष्‍यों के आधार पर सबसे पुराने जीवित नृत्‍य रूपों में से एक माना जाता है। 
* ओड़िसा के पारम्‍परिक नृत्‍य, ओड़िसी का जन्‍म मंदिर में नृत्‍य करने वाली देवदासियों के नृत्‍य से हुआ था। 
* ओड़िसी नृत्‍य का उल्‍लेख शिला लेखों में मिलता है, इसे ब्रह्मेश्‍वर मंदिर के शिला लेखों में दर्शाया गया है साथ ही कोणार्क के सूर्य मंदिर के केन्‍द्रीय कक्ष में इसका उल्‍लेख मिलता है। 
* वर्ष 1950 में इस पूरे नृत्‍य रूप को एक नया रूप दिया गया, जिसके लिए अभिनय चंद्रिका और मंदिरों में पाए गए तराशे हुए नृत्‍य की मुद्राएं धन्‍यवाद के पात्र हैं।
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कथकली-केरल

कथकली

* मुखौटा नृत्य इसी से सम्बंधित है ,( केवल पुरुष कलाकारों द्वारा)
* केरल के दक्षिण - पश्चिमी राज्‍य का एक समृद्ध और फलने फूलने वाला नृत्‍य कथकली यहां की परम्‍परा है। 
* कथकली का अर्थ है एक कथा का नाटक या एक नृत्‍य नाटिका। 
* कथा का अर्थ है कहानी, यहां अभिनेता रामायण और महाभारत के महाग्रंथों और पुराणों से लिए गए चरित्रों को अभिनय करते हैं।
* कथकली अभिनय, 'नृत्य' (नाच) और 'गीता' (संगीत) तीन कलाओं से मिलकर बनी एक संपूर्ण कला है। 
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भरतनाट्यम् ― तमिलनाडु

भरतनाट्यम् भरतनाट्यम्

भरत नाट्यम, भारत के प्रसिद्ध नृत्‍यों में से एक है तथा इसका संबंध दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्‍य से है
* भरत नाट्यम में नृत्‍य के तीन मूलभूत तत्‍वों को कुशलतापूर्वक शामिल किया गया है। 
* ये हैं भाव अथवा मन:स्थिति, राग अथवा संगीत और स्‍वरमार्धुय और ताल अथवा काल समंजन। 
* भरत नाट्यम की तकनीक में, हाथ, पैर, मुख, व शरीर संचालन के समन्‍वयन के 64 सिद्धांत हैं, जिनका निष्‍पादन नृत्‍य पाठ्यक्रम के साथ किया जाता है।
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मध्य प्रदेश के प्रमुख लोकनृत्य

करमा नृत्य

 1) करमा नृत्य : मध्य प्रदेश के गोंड और बैगा आदिवासियों का प्रमुख नृत्य है। जो मंडला के आसपास क्षेत्रों में किया जाता है। करमा नृत्य गीत कर्म देवता को प्रशन्न करने के लिए किया जाता है। यह नृत्य कर्म का प्रतीक है। जो आदिवासी व लोकजीवन की कर्म मूलक गतिविधियों को दर्शाता है। यह नृत्य विजयदशमी से प्रारंभ होकर वर्षा के प्रारंभ तक चलता है। ऐसा माना जाता है कि करमा नृत्य कर्मराजा और कर्मरानी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है इसमें प्रायः आठ पुरुष व आठ महिलाएं नृत्य करती है। ये गोलार्ध बनाकर आमने सामने खड़े होकर नृत्य करते है। एक दल गीत उठता है और दूसरा दल दोहराता है | वाध्य यन्त्र मादल का प्रयोग Read More : मध्य प्रदेश के प्रमुख लोकनृत्य about मध्य प्रदेश के प्रमुख लोकनृत्य

मणिपुर क्षेत्र से आया शास्‍त्रीय नृत्‍य मणिपुरी नृत्‍य है

मणिपुर क्षेत्र से आया शास्‍त्रीय नृत्‍य मणिपुरी नृत्‍य है

पूर्वोत्तर के मणिपुर क्षेत्र से आया शास्‍त्रीय नृत्‍य मणिपुरी नृत्‍य है। 
* मणिपुरी नृत्‍य भारत के अन्‍य नृत्‍य रूपों से भिन्‍न है।
* इसमें शरीर धीमी गति से चलता है, सांकेतिक भव्‍यता और मनमोहक गति से भुजाएँ अंगुलियों तक प्रवाहित होती हैं। 
* यह नृत्‍य रूप 18वीं शताब्‍दी में वैष्‍णव सम्‍प्रदाय के साथ विकसित हुआ जो इसके शुरूआती रीति रिवाज और जादुई नृत्‍य रूपों में से बना है।
* विष्‍णु पुराण, भागवत पुराण तथा गीत गोविंदम की रचनाओं से आई विषयवस्तुएँ इसमें प्रमुख रूप से उपयोग की जाती हैं।
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कथक नृत्य― उत्तर भारत

कथक नृत्य

कथक का नृत्‍य रूप 100 से अधिक घुंघरु‍ओं को पैरों में बांध कर तालबद्ध पदचाप, विहंगम चक्‍कर द्वारा पहचाना जाता है और हिन्‍दु धार्मिक कथाओं के अलावा पर्शियन और उर्दू कविता से ली गई विषयवस्‍तुओं का नाटकीय प्रस्‍तुतीकरण किया जाता है। 
* कथक का जन्‍म उत्तर में हुआ किन्‍तु पर्शियन और मुस्लिम प्रभाव से यह मंदिर की रीति से दरबारी मनोरंजन तक पहुंच गया।
* इस नृत्‍य परम्‍परा के दो प्रमुख घराने हैं, इन दोनों को उत्तर भारत के शहरों के नाम पर नाम दिया गया है और इनमें से दोनों ही क्षेत्रीय राजाओं के संरक्षण में विस्‍तारित हुआ - लखनऊ घराना और जयपुरघराना।
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भारतीय शास्‍त्रीय नृत्‍य

भारतीय शास्‍त्रीय नृत्‍य

साहित्‍य में पहला संदर्भ वेदों से मिलता है, जहां नृत्‍य व संगीत का उदगम है । नृत्‍य का एक ज्‍यादा संयोजित इतिहास महाकाव्‍यों, अनेक पुराण, कवित्‍व साहित्‍य तथा नाटकों का समृद्ध कोष, जो संस्‍कृत में काव्‍य और नाटक के रूप में जाने जाते हैं, से पुनर्निर्मित किया जा सकता है । शास्‍त्रीय संस्‍कृत नाटक (ड्रामा) का विकास एक वर्णित विकास है, जो मुखरित शब्‍द, मुद्राओं और आकृति, ऐतिहासिक वर्णन, संगीत तथा शैलीगत गतिविधि का एक सम्मिश्रण है । यहां 12वीं सदी से 19वीं सदी तक अनेक प्रादेशिक रूप हैं, जिन्‍हें संगीतात्‍मक खेल या संगीत-नाटक कहा जाता है । संगीतात्‍मक खेलों में से वर्तमान शास्‍त्रीय नृत्‍य-रूपों Read More : भारतीय शास्‍त्रीय नृत्‍य about भारतीय शास्‍त्रीय नृत्‍य

जनजातीय और लोक संगीत

जनजातीय और लोक संगीत

जनजातीय और लोक संगीत उस तरीके से नहीं सिखाया जाता है जिस तरीके से भारतीय शास्‍त्रीय संगीत सिखाया जाता है । प्रशिक्षण की कोई औपचारिक अवधि नहीं है। छात्र अपना पूरा जीवन संगीत सीखने में अर्पित करने में समर्थ होते हैं । ग्रामीण जीवन का अर्थशास्‍त्र इस प्रकार की बात के लिए अनुमति नहीं देता । संगीत अभ्‍यासकर्ताओं को शिकार करने, कृषि अथवा अपने चुने हुए किसी भी प्रकार का जीविका उपार्जन कार्य करने की इजाजत है। Read More : जनजातीय और लोक संगीत about जनजातीय और लोक संगीत

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