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सिलेबस : मध्यमा महागुजरात गन्धर्व संगीत समिति
महागुजरात गाांधर्व सांगीत सममतत
गायन और र्ादन का अभ्यासक्रम
सांगीत मध्यमा
क्रक्रयात्मक - 225 अांक, लेखित शास्त्र – 75 अांक, कुल अांक – 300.
समय: - 1 साल (80 से 100 घांटे का प्रमशक्षण) परीक्षा समय: - 20 ममतनट.
क्रक्रयात्मक - 225 अांक : -
1) राग – 7, अल्हैया बिलावल, हमीर, पटदीप, तिलंग, भैरव, पीलु, िहार.
2) ऊपर ददये हुए रागों में से कोई भी 2 राग में मुक्त आलाप और मध्यलय के स्थायी – अंिरा में िालिद्ध आलाप – िान (िीनिाल में) करने की क्षमिा और 5 से 7 ममतनट स्विंत्र प्रस्िुति की क्षमिा.
3) ऊपर ददये हुए रागों में से कोई भी 1 राग में ध्रुपद और 1 रागमें धमार – ठाय और दुगुन मे गाने की क्षमिा.
4) राग यमन और मालकौंस में िड़ाख्याल की िंददश गाने की क्षमिा और राग यमन में िड़ा और छोटा ख्याल आलाप – िान, िोलिान के साथ 15 ममतनट की प्रस्िुति की क्षमिा.
5) ऊपर ददये हुए रागों में से कोई भी 1 राग में िराना.
6) आलाप - िान द्रुिलय में गाने की क्षमिा.
7) ऊपर ददये हुए रागों में से कोई भी 2 राग में भजन या ककितन या हवेली पद िैयार करना.
8) झपिाल, एकिाल, दीपचंदी, चौिाल, धमार - िाल मात्रा, खंड, दुगुन के साथ िोलने की और मलखने की क्षमिा.
9) स्वरज्ञान, आकार में गाये हुए 3 – 4 स्वर समूह को पहचानने की क्षमिा.
10) राग आधाररि किल्मी गीि – गजल – गुजरािी गीि िैयार करना.
11) प्रत्येक राग के आरोह – अवरोह के साथ राग का पूवाांग और उत्िरांग का चलन, पकड़ की जानकारी और गाकर ििाने की क्षमिा.
लेखित – 75 अांक: -
1) पाररभाषिक शब्द : - श्रुति, जनकमेल, जन्यराग, ग्रह, अंश, न्यास, दुगुन, तिगुण, आड़ लय, शुद्धराग, मींड़, गमक,
कण, स्पशत, िोलिान, िोलआलाप, सप्िक, राग की जाति, सप्िक का पूवाांग –उत्िरांग, नाद –
की षवशेििा, वणत, स्थायी, आरोही, अवरोही, संचारी, वाद्यो के प्रकार.
2) यमन, मालकौंस, बिहाग, केदार और भैरव राग के छोटाख्याल की िंददश को िालखंड के साथ मलषपिद्ध करने की क्षमिा.
3) जीर्न चररर और कायव: - 1) पं. ओमकारनाथ ठाकुर 2) उस्िाद बिस्स्मल्लाह खााँ 3) उस्िाद अल्लारखााँ
क्रक्रयात्मक शास्त्र के प्रश्न: - रागो की िुलना,
िंददश, िाल, मलषपिद्ध करने की क्षमिा। अभ्यासक्रम के रागो के िारे में प्रश्न पूछ शकिे है. मलखे हुए स्वरो से राग पहचान.
उद्देश्य: - षवदध्याथी को िानपूरे पर गाने को िैयार करना. द्रुपद गायकी के िारे में समझाना। नोमिोम आलाप की
समझ देना. दुगुन – तिगुण लयकारी का ज्ञान देना. कलाकारो के जीवन चररत्र उस िरह समझाना की उस
में से षवदयाथी को प्रेरणा ममले.