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राग परिचय
S.No | राग | |
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1 | अडाना |
राग अडाना के आरोह में गंधार वर्ज्य होने के कारण यह राग दरबारी कान्हड़ा से अलग दिखता है। राग अडाना... more |
2 | अभोगी कान्ह्डा |
राग अभोगी कान्हड़ा दक्षिण भारतीय पद्धति का राग है। इसमें कान्हड़ा का अंग है, इसलिये गन्धार को... more |
3 | अल्हैया बिलावल |
राग बिलावल में कोमल निषाद के प्रयोग से राग अल्हैया बिलावल का निर्माण हुआ है। इसके अवरोह में... more |
4 | अल्हैयाबिलावल | |
5 | अहीर भैरव |
राग अहीर भैरव का दिन के रागों में एक विशेष स्थान है। यह राग पूर्वांग में राग भैरव के समान है और ... more |
6 | अहीरभैरव | |
7 | आनंदभैरव | |
8 | आसावरो | |
9 | ककुभ | |
10 | कलावती |
राग कलावती एक बहुत ही मधुर और सरल राग है। इसके पूर्वांग में रिषभ और मध्यम वर्ज्य होने से अधिक... more |
11 | काफ़ी | |
12 | काफी |
राग काफी रात्रि के समय की भैरवी है। इस राग में पंचम बहुत खुला हुआ लगता है। राग को सजाने में कभी... more |
13 | कामोद |
राग कामोद बहुत ही मधुर और प्रचलित राग है। इस राग में मल्हार अंग, हमीर अंग और कल्याण अंग की छाया... more |
14 | कालिंगड़ा जोगिया | |
15 | कीरवाणी |
यह कर्नाटक संगीत से हिन्दुस्तानी संगीत में लिया हुआ राग है। इस राग का वाद्य संगीत में ज्यादा... more |
16 | केदार |
रात्रि के प्रथम प्रहर में गाई जाने वाली यह रागिनी करुणा रस से परिपूर्ण तथा बहुत मधुर है। इस राग... more |
17 | कोमल-रिषभ आसावरी |
यह एक बहुत ही मधुर दिन का राग है। इसे आसवारी तोड़ी भी कहा जाता है। यह राग बिलासखानी तोड़ी से मिलता... more |
18 | कौशिक कान्हड़ा | |
19 | कौशिक ध्वनी (भिन्न-षड्ज) |
प्राचीन राग भिन्न-षड्ज को वर्तमान में कौशिक-ध्वनि के नाम से जाना जाता है। इसका... more |
20 | कौसी कान्ह्डा |
यह राग दो विभिन्न अंगों द्वारा गाया जाता है - मालकौंस अंग और बागेश्री अंग। लेकिन मालकौंस अंग ही... more |
21 | खंबावती | |
22 | खमाज |
रात्रि के रागों में श्रंगार रस के दो रूप, विप्रलंभ तथा उत्तान श्रंगार से ओत प्रोत है राग खमाज।... more |
23 | खम्बावती |
राग खम्बावती बहुत ही मधुर राग है। राग झिंझोटी, जो की ज्यादा प्रचलन में है, इससे मिलता जुलता राग... more |
24 | गारा | |
25 | गुणकली |
करुणा और भक्ति रस से परिपूर्ण यह प्रातः कालीन राग श्रोताओं की भावनाओं को आध्यात्मिक दिशा की और... more |
26 | गुर्जरी तोडी |
राग तोडी में पंचम स्वर को वर्ज्य करने से एक अलग प्रभाव वाला राग गुर्जरी तोडी बनता है। इस राग को... more |
27 | गोपिका बसन्त |
यह एक बहुत ही मीठा राग है। इस राग में राग मालकौन्स की झलक दिखाई देती है, पर पंचम का उपयोग करने... more |
28 | गोरख कल्याण |
यह एक बहुत ही मीठा और प्रभावशाली राग है। आरोह में तीन स्वर वर्ज्य होने के कारण इस राग की जाति... more |
29 | गौड मल्हार |
यह बहुत ही मधुर, चित्ताकर्षक और प्रभावशाली राग है परन्तु गाने में कठिन है। यह राग बहुत प्रचलन... more |
30 | गौड सारंग |
यह दिन के तीसरे प्रहर में गाया जाने वाला सुमधुर राग है। सारंग अंग के सभी रागों के पश्चात इस राग... more |
31 | गौड़मल्लार | |
32 | गौड़सारंग | |
33 | गौरी | |
34 | गौरी (भैरव अंग) |
यह राग दया और इश्वर भक्ति कि भावना से ओत प्रोत है। इसलिये इस राग मे भक्ति रस और विरह रस कि... more |
35 | चन्द्रकान्त | |
36 | चन्द्रकौन्स |
राग मालकौन्स के कोमल निषाद की जगह जब निषाद शुद्ध का प्रयोग होता है तब राग... more |
37 | चारुकेशी |
राग चारुकेशी अपेक्षाकृत नया राग है जिसे दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति से लिया गया है। यह बहुत ही... more |
38 | छाया-नट | |
39 | छायानट |
इस राग को राग छाया भी कहते हैं। यह छाया और नट रागों का मिश्रित रूप है। शुद्ध मध्यम का प्रयोग... more |
40 | जयजयवन्ती |
राग जयजयवन्ती अपने नाम के अनुसार ही अति मधुर तथा चित्ताकर्षक राग है। गाने में पेचीदा होने के... more |
41 | जयतकल्याण | |
42 | जलधर केदार |
यह केदार अंग का राग है। इस राग में राग दुर्गा के स्वर होते हुए भी राग केदार दिखाया जाता है।... more |
43 | जेजैवंती | |
44 | जेतश्री | |
45 | जैत | |
46 | जैनपुरी | |
47 | जोग |
राग जोग बहुत ही सुमधुर राग है। इस राग में आरोह में शुद्ध गंधार और अवरोह में कोमल गंधार प्रयुक्त... more |
48 | जोगकौंस |
यह एक अपेक्षाकृत नया राग है जो पंडित जगन्नाथ बुआ पुरोहित 'गुणीदास' द्वारा बनाया... more |
49 | जोगिया |
इस राग को जोगी नाम से भी जाना जाता है। राग भैरव के सामन ही इसमें रिषभ और धैवत कोमल लगते हैं, पर... more |
50 | जोगेश्वरी |
पंडित रवि शंकर जी द्वारा बनाया गया राग जोगेश्वरी, अत्यंत मधुर और सीधा राग है। यह राग, पूर्वांग... more |
51 | जौनपुरी |
राग जौनपुरी दिन के रागों में अति मधुर व विशाल स्वर संयोजन वाला सर्वप्रिय राग है। रे रे म... more |
52 | झिंझोटी |
राग झिंझोटी चंचल प्रकृति का राग है इसीलिए यह राग वाद्य यन्त्रों के लिये बहुत उपयुक्त है। इसमे... more |
53 | टंकी | |
54 | तिलंग |
भक्ति तथा श्रंगार रस की रसवर्षा करने वाली यह चित्त आकर्षक रागिनी है। राग तिलंग में हालांकि रिषभ... more |
55 | तिलंग बहार |
राग तिलंग बहार, राग तिलंग और राग बहार का मिश्रण है। इन दोनों रागों के स्वर राग तिलंग बहार को... more |
56 | तिलककामोद | |
57 | तोडी |
राग तोडी अपने कोमल और तीव्र स्वरों द्वारा ऐसा प्रभाव पैदा करता है कि भावना का सागर उमड पडता है।... more |
58 | त्रिवेणी | |
59 | दरबारी कान्हड़ा |
राग दरबारी कान्हडा, तानसेन द्वारा बनाया हुआ राग है, यह धारणा प्रचिलित है। यह राग शांत और गम्भीर... more |
60 | दरबारी कान्हडा |
राग दरबारी कान्हडा, तानसेन द्वारा बनाया हुआ राग है, यह धारणा प्रचिलित है। यह राग शांत और गम्भीर... more |
61 | दीपक | |
62 | दुर्गा |
रात्रि के रागों में राग दुर्गा बहुत मधुर और सब लोगों का प्रिय राग है। रे रे म रे; ,ध ,ध... more |
63 | दुर्गा द्वितीय | |
64 | देव गन्धार |
इस राग का विस्तार राग जौनपुरी के समान होता है। राग गांधारी भी इसके पास का राग है परन्तु राग... more |
65 | देवगंधार |
राग देवगंधार को गाने बजाने का समय दिन का दूसरा पहर माना गया है. इस राग के बारे में एक और कहानी... more |
66 | देवगिरि बिलावल |
राग देवगिरि बिलावल, शुद्ध कल्याण और बिलावल का मिश्रण है और साथ ही इसमें कल्याण अंग भी झलकता है।... more |
67 | देवगिरी | |
68 | देवर्गाधार | |
69 | देवश्री |
यह अपेक्षाकृत नया, मधुर और अप्रचलित राग है। इस राग में कोई वक्रता नही है। यह तीनों सप्तकों में... more |
70 | देवसाख | |
71 | देश | |
72 | देशकार |
राग देशकार, राग भूपाली के निकट का राग है, इसलिये इसे गाते समय सावधानी बरतनी चाहिये। राग देशकार... more |
73 | देस |
यह बहुत ही मधुर राग है और ध म ग रे; ग ,नि सा; इन स्वरों से पहचाना जाता है। इस... more |
74 | देसी |
यह स्वर संगतियाँ राग देसी का रूप दर्शाती हैं - रे म प ध ; म प ; रे ग१ ; सा रे ; ,... more |
75 | धनाश्री | |
76 | धानी | |
77 | नंद |
राग नन्द को राग आनंदी, आनंदी कल्याण या नन्द कल्याण के नाम से भी जाना जाता है। इस राग में बिहाग, ... more |
78 | नट भैरव | |
79 | नट राग | |
80 | नटबिलावल | |
81 | नायकी कान्ह्डा | |
82 | नायकी द्वितीय | |
83 | नायकीकान्हड़ा | |
84 | नारायणी |
राग नारायणी को दक्षिण पद्धति के संगीत से हिन्दुस्तानी पद्धति में विद्वानों द्वारा लाया गया है।... more |
85 | पंचम | |
86 | पंचम जोगेश्वरी |
पंचम जोगेश्वरी - यह राग आचार्य तनरंग जी की कल्पना है, जिसमें पंचम का उपयोग अवरोह में विशेष रूप... more |
87 | पटदीप |
राग भीमपलासी में शुद्ध निषाद का प्रयोग करने पर राग पटदीप सामने आता है। राग... more |
88 | पटदीपकी | |
89 | पटमंजरी | |
90 | परज | |
91 | परमेश्वरी |
यह राग पंडित रवि शंकर जी द्वारा रचित है। यह राग बहुत ही मधुर है लेकिन अप्रचलित है। इस राग का... more |
92 | पहाड़ी | |
93 | पीलू |
प ,नि सा ग१ ; ग१ रे सा ,नि ; ,नि सा - यह राग पीलू की राग वाचक स्वर संगती है। इस... more |
94 | पूरिया |
राग पूरिया रात्रि के रागों में अनूठा प्रभाव पैदा करता है। यह पूर्वांग प्रधान राग है। इस राग का... more |
95 | पूरिया कल्याण |
यह राग, यमन और पूरिया धनाश्री या पूरिया से मिल कर बना है। इस राग के अवरोह में, उत्तरांग में... more |
96 | पूरिया धनाश्री |
राग पूरिया धनाश्री एक सायंकालीन संधि प्रकाश राग है। यह करुणा रस प्रधान गंभीर राग है। इसका निकटतम... more |
97 | पूर्याधनाश्री | |
98 | पूर्वी |
राग पूर्वी सायंकाल संधि प्रकाश के समय गाया जाने वाला राग है। यह पूर्वांग प्रधान राग है। इस राग... more |
99 | प्रभात | |
100 | बंगालभैरव | |
101 | बड़हंससारंग | |
102 | बसन्त |
राग बसंत, बसंत ऋतु में गाया जाने वाला राग है। इसे मध्य और तार सप्तक में अधिक गाया जाता है। इस... more |
103 | बसन्त मुखारी |
राग बसंत मुखारी दिन के रागों में बडा ही मीठा परंतु कठिन राग है। इस राग में पूर्वांग में राग भैरव... more |
104 | बहार |
राग बहार, वसंत व शरद ऋत में गाया जाने वाला अत्यंत मीठा राग है। खटके और मुरकियों से महफिल में... more |
105 | बागेश्री |
राग बागेश्री रात्रि के रागों में भाव तथा रस का स्त्रोत बहाने वाला मधुर राग है। इस राग को बागेसरी... more |
106 | बागेश्वरी | |
107 | बिलावल शुद्ध | |
108 | बिलासखानी तोडी |
यह राग, भैरवी थाट से उत्पन्न होता है। यह राग मियाँ तानसेन के पुत्र बिलास खान ने बनाया था और उनके... more |
109 | बिहाग |
राग बिहाग अत्यंत ही प्रचलित और मधुर राग है। प म् ग म यह स्वर समुदाय राग वाचक है... more |
110 | बैरागी |
राग बैरागी को पंडित रवि शंकर जी ने प्रचलित किया है। यह बहुत ही कर्णप्रिय राग है और भक्ति रस से... more |
111 | बैरागी तोडी |
राग बैरागी तोडी को पंडित रवि शंकर जी ने प्रचलित किया है। गाने में कठिन लेकिन मधुर है। राग बैरागी... more |
112 | भंखार | |
113 | भटियार |
राग भटियार मारवा ठाट से उत्पन्न राग है। सा ध ; नि प ; ध म ; प ग; यह राग भटियार... more |
114 | भीम |
राग भीम को गावती के नाम से भी जाना जाता है। इस राग के उत्तरांग में कोमल निषाद को तार... more |
115 | भीमपलासी |
राग भीमपलासी दिन के रागों में अति मधुर और कर्णप्रिय राग है। इसके अवरोह में सातों स्वरों का... more |
116 | भूपाल तोडी |
राग भूपाल तोडी, शुद्धता और पवित्रता का सूचक है। इसलिये इस राग में भक्ति रस से परिपूर्ण बन्दिशें... more |
117 | भूपाली |
यह राग भूप के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह पूर्वांग प्रधान राग है। इसका विस्तार तथा चलन अधिकतर मध्य... more |
118 | भैरव |
राग भैरव प्रभात बेला का प्रसिद्ध राग है। इसका वातावरण भक्ति रस युक्त गांभीर्य से भरा हुआ है। यह... more |
119 | भैरवी |
यह भैरवी थाट का आश्रय राग है। हालांकि इस राग का गाने का समय प्रातःकाल है पर इस राग को गाकर महफिल... more |
120 | मधमाद सारंग |
राग मधुमाद सारंग को मधमाद सारंग या मध्यमादी सारंग भी कहा जाता... more |
121 | मधुकौंस |
राग मधुकौंस अपेक्षाकृत नया राग है और अत्यंत प्रभावशाली वातावरण बनाने के कारण, कम समय में ही... more |
122 | मधुवन्ती |
यह अपेक्षाकृत नया राग है। पूर्व में यह राग अम्बिका के नाम से जाना जाता था। यह श्रृंगार रस से... more |
123 | मध्यमादि सारंग | |
124 | मलुहा | |
125 | मल्हार |
संगीत सम्राट तानसेन द्वारा अविष्क्रुत इस राग का मौसमी रागों में प्रमुख स्थान है। वर्षा ऋतु में... more |
126 | मांड |
राग मांड चंचल तथा क्षुद्र प्रक्रुति का, सुनने में सहज परंतु गायन वादन में कठिन राग है। मांड गायन... more |
127 | मारवा |
राग मारवा माधुर्य से परिपूर्ण राग है। इस राग में रिषभ और धैवत प्रमुख स्वर हैं। जिस पर बार बार... more |
128 | मारू बिहाग |
राग मारूबिहाग बहुत ही सुन्दर राग है। म ग रे सा गाते समय रिषभ को सा... more |
129 | मालकौंस | |
130 | मालकौन्स |
राग मालकौन्स रात्रि के रागों में बहुत ही लोकप्रिय राग है। इस राग के युगल स्वरों में परस्पर संवाद... more |
131 | मालगुंजी |
यह बहुत ही मीठा राग है। यह बागेश्री से मिलता जुलता राग है। आरोह में शुद्ध गंधार लगाने से यह राग... more |
132 | मालश्री | |
133 | मालीगौरा | |
134 | मियाँ की मल्लार | |
135 | मियाँ की सारंग | |
136 | मुलतानी |
यह अत्यंत मधुर राग है। राग तोडी से बचने के लिये राग मुलतानी में ,नि सा म१ ग१ रे१ सा... more |
137 | मेघ | |
138 | मेघ मल्हार |
राग मेघ मल्हार बहुत ही मधुर और गंभीर वातावरण पैदा करने वाला राग है। इस राग के सभी स्वर राग... more |
139 | मेघरंजनी | |
140 | मोहनकौन्स |
राग मालकौंस में यदि आरोह में गंधार शुद्ध और अवरोह में गंधार कोमल का प्रयोग... more |
141 | यमन |
प्रथम पहर निशि गाइये ग नि को कर संवाद। जाति संपूर्ण तीवर मध्यम यमन आश्रय राग ॥... more |
142 | यमनी | |
143 | रागेश्री |
यह बहुत ही मधुर राग है। संगीत शास्त्रों के अनुसार राग रागेश्री में निषाद शुद्ध और निषाद कोमल का... more |
144 | रागेश्वरी | |
145 | रामकली |
ये भैरव अंग का राग है। इसमें रिषभ और धैवत पर राग भैरव की तरह अन्दोलन नहीं किया जाता। इस राग को ... more |
146 | रामदासी मल्हार |
यह एक बहुत ही मधुर लेकिन अप्रसिद्ध राग है। यह राग शहंशाह अकबर के दरबार गायक श्री रामदास जी... more |
147 | लंका-दहन सारंग |
यह सारंग का प्राचीन प्रकार है जो की वर्त्तमान में अधिक प्रचलन में नहीं है। राग वृंदावनी सारंग के... more |
148 | लच्छासाख | |
149 | ललिट | |
150 | ललित |
राग ललित एक बहुत ही मधुर राग है। इस राग में दोनों मध्यम (तीव्र व शुद्ध मध्यम) एक साथ (म्... more |
151 | वराटी | |
152 | वसंत | |
153 | वाचस्पती |
राग वाचस्पती कर्नाटक संगीत से लिया गया राग है। राग मारू बिहाग में निषाद कोमल करने से राग... more |
154 | विभाग | |
155 | विभास |
राग देशकार के रिषभ और धैवत कोमल कर देने से ही राग विभास बन जाता है। इस राग में राग भैरव के समान... more |
156 | विलासखानी तोड़ी | |
157 | विहाग | |
158 | वृन्दावनी सारंग | |
159 | शंकरा |
राग शंकरा की प्रकृति उत्साहपूर्ण, स्पष्ट तथा प्रखर है। यह राग वीर रस से परिपूर्ण है। यह एक... more |
160 | शहाना | |
161 | शहाना कान्ह्डा |
राग शहाना कान्हड़ा में धैवत एक महत्वपूर्ण स्वर है जिस पर न्यास किया जाता है। अन्य न्यास स्वर पंचम... more |
162 | शिवभैरव | |
163 | शिवरंजनी |
यह बहुत ही मधुर राग है। राग भूपाली में गंधार शुद्ध न लेते हुए गंधार कोमल लगाया जाये तो राग... more |
164 | शुक्लबिलावल | |
165 | शुद्ध कल्याण |
राग शुद्ध कल्याण में आरोह में राग भूपाली और अवरोह में राग यमन के स्वर प्रयुक्त होते हैं। इस राग... more |
166 | शुद्ध मल्लार | |
167 | शुद्ध सारंग |
दिन के रागों में राग शुद्ध सारंग एक बहुत ही प्रभावशाली राग है जो की श्रोताओं पर गहरा प्रभाव... more |
168 | शोभावरी |
यह बहुत ही मधुर राग है, लेकिन प्रचार में कम है। राग दुर्गा में, धैवत शुद्ध न लेते हुए धैवत कोमल... more |
169 | श्याम | |
170 | श्याम कल्याण |
राग श्याम कल्याण बडा ही मीठा राग है। यह कल्याण और कामोद अंग (ग म प ग म रे सा)... more |
171 | श्री |
राग श्री एक पुरुष राग है। भारतीय संगीत शास्त्रों में 6 पुरुष राग और 36 रागिनियों का वर्णन किया... more |
172 | श्रीराग | |
173 | षट्राग | |
174 | सरपर्दा | |
175 | सरस्वती |
इस माधुर्य से परिपूर्ण राग को कर्नाटक संगीत पद्धति से हिंदुस्तानी संगीत में लाया गया है। राग... more |
176 | सरस्वती केदार |
This raag is a mixture of two Raags - Raag Saraswati and Raag Kedar. The notations R R M... more |
177 | साजगिरी | |
178 | सामंतसारंग | |
179 | सारंग (बृंदावनी सारंग) |
राग सारंग को राग बृंदावनी सारंग भी कहा जाता है। यह एक अत्यंत मधुर व लोकप्रिय राग है। इस राग में... more |
180 | सिंदूरा | |
181 | सिंधुभैरवी | |
182 | सिन्धुरा |
यह एक चंचल प्रकृति का राग है जो की राग काफी के बहुत निकट है। राग काफी से इसे अलग दर्शाने के लिए... more |
183 | सुघराई | |
184 | सुन्दरकली |
राग सुंदरकली एक मधुर परंतु नया और अप्रचलित राग है। यह राग तीनों सप्तकों में उन्मुक्त रूप से गाया... more |
185 | सुन्दरकौन्स |
यह राग बहुत ही प्रभावी और चित्ताकर्षक है। राग मालकौंस के कोमल धैवत की जगह जब शुद्ध धैवत का... more |
186 | सूरदासी मल्हार |
राग सूरदासी-मल्हार में सारंग अंग और मल्हार अंग का मिश्रण है। आरोह में सारंग अंग जैसे - ... more |
187 | सूरमल्लार | |
188 | सूहा | |
189 | सैंधवी | |
190 | सोरठ | |
191 | सोहनी |
यह उत्तरांग प्रधान राग है। इसका विस्तार तार सप्तक में अधिक होता है। यदि इस राग का मंद्र सप्तक... more |
192 | सौराष्ट्रटंक | |
193 | हंसकंकणी | |
194 | हंसकिंकिणी |
यह राग कम प्रचलन में है। इसके निकटतम राग हैं - राग प्रदीपकी, धनाश्री और भीमपलासी। यह राग धनाश्री... more |
195 | हंसध्वनी |
यह राग कर्नाटक संगीत पद्धति से हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति में सम्मिलित किया गया है। यह राग, राग... more |
196 | हमीर |
राग हमीर रात्रि के समय का वीर रस प्रधान और चंचल प्रक्रुति का राग है। यह कल्याण थाट का राग है। ... more |
197 | हरिकौन्स |
यह स्वर संगतियाँ राग हरिकौन्स का रूप दर्शाती हैं - सा ,नि१ ,ध ; ,ध ,नि१ ,ध ,म् ,... more |
198 | हामीर | |
199 | हिंदोल | |
200 | हिन्डोल |
यह राग मधुर परन्तु गाने में कठिन है इसीलिए इसे गुरु मुख से सीखना ही उचित है। इस राग में मध्यम... more |
201 | हेमंत |
राग हेमंत बहुत ही मधुर राग है। राग कौशिक ध्वनि के अवरोह में जब पंचम और रिषभ स्वरों का भी उपयोग... more |
202 | हेमकल्याण | |
203 | हेमश्री |
माधुर्य से परिपूर्ण राग हेमश्री की रचना आचर्य विश्वनाथ राव रिंगे 'तनरंग' द्वारा की गई है. ... more |