संपर्क : 9259436235
कर्नाटक और हिंदुस्तानी संगीत में मूलभूत अंतर क्या हैं?
भारतीय शास्त्रीय संगीत के अंतर्गत दो प्रकार के संगीत आते हैं|
- हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत
- कर्नाटक शास्त्रीय स्नगीत
हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत उत्तर भारत से जुड़ा हुआ है और कर्नाटक दक्षिण भारत से|
ये दोनो ही प्रकार के संगीत सामवेद से उत्पन्न हुए हैं| प्राचीन समय में भारत में सिर्फ़ एक ही प्रकार का संगीत प्रचलित था|
लेकिन ग्यारहवीं और बारहवी शताब्दी के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप का अधिकतर उत्तरी हिस्सा मुस्लिम शशकों के अंतर्गत आजाने के कारण यहा का संगीत काफ़ी हद तक फ़ारसी और अरबी संगीत पद्धतियों से प्रभावित हुआ| चूँकि मुस्लिम लोग इस हिस्से को हिन्दुस्तान बुलाते थे तो ये संगीत आगे चलकर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के नाम से जाना गया| और बचे हुए दक्षिण भाग में भारत का मूल संगीत अधिकतर कर्नाटक और इसके आसपास के क्षेत्र में फला फूला तो इस हिस्से के संगीत को कर्नाटक शास्त्रीय संगीत कहा गया| इसलिए आज भी कर्नाटक संगीत को प्राचीन भारत के संगीत के सबसे समीप माना जाता है|
अब हम लोग आते हैं इन दोनो प्रकार के संगीत के बीच में अंतर पर|
दोनो ही प्रकार के संगीत में राग और सात स्वर की अवधारणा है| लेकिन दोनो मे अलग अलग प्रकार के वाद्या यंत्रो को प्रधानता दी जाती है|और इसके अलावा मुख्य अंतर ये है की किस प्रकार से संगीत की प्रस्तुति की जाती है| समान सुरो की रचना की हिन्दुस्तानी संगीत में अलग तरीके से प्रस्तुति की जाएगी और कार्नेटिक मे अलग प्रकार से| उदाहरण के तौर पर राग भोपाली(हिन्दुस्तानी राग) और राग मोहनम(कर्नाटिक राग) दोनो ही के आरोह और अवरोह समान हैं लेकिन इनकी प्रस्तुतिकरण अलग अलग प्रकार से होती है| और इसीलिए इनका नाम भी अलग अलग है| और अधिक विस्तार से जान ने के लिए आप इस वीडियो को देख सकते हैं|
राग परिचय
कैराना का किराना घराने से नाता |
गुरु-शिष्य परम्परा |
रागदारी: शास्त्रीय संगीत में घरानों का मतलब |
मेवाती घराने की पहचान हैं पंडित जसराज |
जब हॉलैंड के राजमहल में गूंजे थे पंडित हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी से राग जोग के सुर |
35 हज़ार साल पुरानी बांसुरी मिली |
सुरमयी दुनिया का 'सुर-असुर' संग्राम |