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क्या अलग था गिरिजा देवी की गायकी में
ठुमरी, टप्पा, भजन और खयाल इत्यादि सब कुछ पर समान अधिकार होने के अलावा उनकी अकृत्रिम सुमधुर आवाज़, भरपूर तैयारी और भक्ति भावना से ओत-प्रोत प्रस्तुतिकरण उन्हें अविस्मरणीय बनाता था. खुद भाव प्रमण होकर शब्दों से खेलना और उसके माध्यम रुलाना हँसाना उन्हें खूब आता था.
वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ भट्टाचार्य बताते हैं, 'मैंने 1970 से लेकर 2017 तक लगातार, बनारस में हुए उनके हर कार्यक्रम को सुना है और मुझे यह कहने में कोई गुरेज़ नहीं कि उनकी ख्याल गायकी में चारों वाणी सुनाई देती थी. अतिविलम्बित, दीर्घविलम्बित, मध्यविलम्बित और अंत में तेज़ तान के साथ जाती थी.
बनारस घराने की एक विशेषता है कि यहां ध्रुपद को काटकर खयाल बनाया गया है और खयाल को काटकर ठुमरी के बोल बने हैं. गिरिजा देवी ठुमरी के दो मिजाज़ 'चीख' और "पुकार" में से पुकार को साध्य कर चुकी थी. वो मंदिर में गातीं थी या सामाजिक आयोजनों में लेकिन उनकी पुकार गिरिधर के लिए ही होती थी.
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