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ललित
राग ललित एक बहुत ही मधुर राग है। इस राग में दोनों मध्यम (तीव्र व शुद्ध मध्यम) एक साथ (म् म ; ग म् म ; नि ध१ म् म) प्रयोग होने के कारण इस राग का एक अलग ही वातावरण तैयार होता है। इस राग का धैवत, वास्तविक कोमल धैवत से थोड़ा चढ़ा हुआ होता है, जो शुद्ध धैवत और कोमल धैवत के बीच की श्रुति है, जिसे सिर्फ गुरुमुख से ही सीखा जा सकता है। इस राग में शुद्ध मध्यम और शुद्ध गंधार बहुत ही महत्वपूर्ण स्वर हैं। यह स्वर संगतियाँ राग ललित का रूप दर्शाती हैं -
,नि रे१ ग म म् म ; ग म् ध१ नि ध१ म् म ; म् ध१ नि सा'; म् ध१ म् सा'; सा' रे१' नि ध१ ; म् ध१ नि म् नि ध१ ; म् ध१ म् म ; ग म म् म ; ग ; म् ग रे१ सा ; ध१ म् ध१ सा' ; सा' नि रे१ नि ध१ म् म ; ग रे१ सा ;
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राग परिचय
कैराना का किराना घराने से नाता |
गुरु-शिष्य परम्परा |
रागदारी: शास्त्रीय संगीत में घरानों का मतलब |
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जब हॉलैंड के राजमहल में गूंजे थे पंडित हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी से राग जोग के सुर |
35 हज़ार साल पुरानी बांसुरी मिली |
सुरमयी दुनिया का 'सुर-असुर' संग्राम |