'संगीत के माध्यम से सेवा करता रहूंगा'

जब कभी बांसुरी की चर्चा होती है, तब पंडित हरि प्रसाद चौरसिया का नाम बरबस ही लोगों की जुबान पर आता है. भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी उनकी बांसुरी वादन को सराहने वाले मौजूद हैं.

हरि प्रसाद जी की जीवन गाथा भी ऐसी है जिससे दूसरों को काफ़ी प्रेरणा मिल सकती है.

इलाहाबाद में जन्मे हरि प्रसाद जी के पिता पहलवान थे और चाहते थे कि उनका बेटा भी पहलवानी ही करे. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, बेटे को बांसुरी से प्यार हो गया.

बांसुरी के उसी प्यार ने बाद में उन्हें ऐसी प्रसिद्धि दिलाई कि वो आज भारत की महान विभूतियों में शामिल हैं. हाल में उनसे हुई बातचीत के अंश.

सबसे पहले तो ये बताइए कि बांसुरी से आपका पहला साक्षात्कार कब हुआ था, कैसे रिश्ता जुड़ा इससे, क्योंकि आप पूरी तरह से अलग माहौल से आते हैं?

देखिए बांसुरी से साक्षात्कार तो सबको पैदा होते ही हो जाता है, साक्षात्कार होता है भगवान कृष्ण से. बच्चा अपने मां बाप से पूछता है कि ये कृष्ण भगवान के होठों से लगी हुई चीज क्या है, तभी उनके माता पिता बताते हैं कि बेटा ये बांसुरी है.

ये भगवान श्री कृष्ण बजाया करते थे. तो मेरा मानना है कि बांसुरी से या यू कहें कि संगीत से हर भारतीय का रिश्ता बचपन से ही होता है. पैदा होते ही उन्हें पता हो जाता है कि संगीत भी इस दुनिया में है, बांसुरी भी इस दुनिया में है और भगवान इसे बजाया करते थे.

अच्छा शुरुआत में आपने कुछ दिनों तक गायकी भी की, तो फिर गायकी छोड़कर अचानक बांसुरी पर ही क्यूं ध्यान दिया आपने?

इस क्षेत्र में तो आपको सब कुछ भूलकर संगीत की साधना करनी पड़ती है तब कुछ हासिल हो सकता है अन्यथा नहीं. शायद यही वजह है कि लोगों के पास इस तरह की साधना के लिए वक्त नहीं है.

हरि प्रसाद चौरसिया

गाना तो अभी भी मैं गाता हूं, हां इतना ज़रुर है कि गले की बजाए अब बांसुरी से गाता हूँ जितने भी कलाकार हैं वो अपने वाद्यों के जरिए गीत गाते हैं.

मेरा मानना है कि ये कोई विशेषता नहीं है कि गाना ही चाहिए. हमें अच्छा संगीत लोगों को सुनाना चाहिए ताकि उनकी आत्मा को जैसे ही बहुत ही अच्छी तरह से शांति मिले, मन को शांति मिले और उन्हें लगे कि संगीत एक विभूति है और ये भारत की एक अच्छी परंपरा है.

हां मुझे बांसुरी अच्छी लगती थी और उन दिनों लोगों में ये बात नहीं थी कि बांसुरी को लेकर भी आगे जा सकते हैं. आज भी आप गांवों में पहाड़ियों में खेतों में लोगों को बांसुरी के द्वारा अपना मनोरंजन करते देख सकते हैं तो मुझे लगा कि इसे भी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में बांसुरी को भी सम्मान मिलना चाहिए तो फिर मैने बांसुरी बजाना शुरु किया.

अच्छा आप काफ़ी दिनों तक ऑल इंडिया रेडियो से जुड़े रहे, ये बताइए कि कैसे थे वो दिन...

देखिए समय तो हमेशा एक जैसा रहता है. हां इतना जरुर है कि ऑल इंडिया रेडियो में मुझे काफ़ी सीखने को मिला.

वो उन दिनों एक ऐसा सरकारी माध्यम था जहां संगीत जगत की देश की हर जानी मानी हस्ती आती थी और वहां काम करते हुए मुझे उन्हें नजदीक से देखने और सीखने का मौका मिला.

मैं रिकॉर्डिंग होने के बाद कई बार उसे बजाकर सुनता था और मुझे ऐसा करते हुए काफ़ी कुछ सीखने को मिला, मैंने 9-10 साल वहां नौकरी की लेकिन बड़ा यादगार अनुभव रहा. अब भी बहुत सारे कलाकार हैं जिन्हें वहां से काफ़ी सहयोग मिला है.

आज की युवा पीढ़ी में शास्त्रीय संगीत के प्रति रुझान काफ़ी कम हो चुका है. संगीत भारत में बदल रहा है, तो क्या आपको लगता है कि भारत का पारंपरिक शास्त्रीय संगीत अपना आधार खोता जा रहा है?

देखिए ये तो ऐसा ही है जैसे कि कोई कहे कि सूरज की रोशनी कम हो गई या गंगा का पानी सूख गया. ऐसा कभी नहीं हो सकता है.

हरिप्रसाद चौरसिया

Image captionहरिप्रसाद चौरसिया का कहना है कि वो गले के बजाए बांसुरी से गाते हैं

ये ब्रह्मा द्वारा बनाया गया नाद है ये कभी कम नहीं हो सकता.

हां इतना ज़रुर है कि आजकल कॉरपोरेट जगत के लोग जल्दी जल्दी पैसा बनाने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाते हैं लेकिन मेरा मानना है कि वैसा संगीत लंबे समय तक अपनी चमक बनाए रखने में कामयाब नहीं हो सकता है.

अच्छा ये बताइए कि वो कौन से कारगर कदम उठाए जाने चाहिए जिससे आज कल की युवा पीढ़ी का रुझान शास्त्रीय संगीत में पैदा हो सके?

देखिए ये भगवान का प्रसाद है. एक तो कलाकार पैदा होता है जब उसको मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त हो क्योंकि बिना आशीर्वाद के वो कला के क्षेत्र में आ ही नहीं आ सकते क्योंकि उसमें सबसे पहले स्वर और दूसरे लय कहीं भी बाजार में नहीं मिल सकता.

इसके अलावा कोई आपको कोई जबरदस्ती संगीत नहीं सिखा सकते न ही किसी स्कूल में सिखाया जा सकता है.

इस क्षेत्र में तो आपको सब कुछ भूलकर संगीत की साधना करनी पड़ती है तब कुछ हासिल हो सकता है अन्यथा नहीं. शायद यही वजह है कि लोगों के पास इस तरह की साधना के लिए वक्त नहीं है

बांसुरी से आपका नाता बड़ा अटूट है. भारत में आप और बांसुरी एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं. ये बताइए कि आखिर बांसुरी इतनी खास क्यूं है आपके लिए?

देखिए बांसुरी मेरी ही नहीं सबकी पसंदीदा है. आज भी आप गांवों में चले जाइए, लोग खेतों में इसे बजाते हैं और अपना मनोरंजन करते हैं. इसके अलावा दुनिया के सारे वाद्य फैक्ट्रियों में बनाए जा सकते हैं जबकि बांसुरी जो कि भगवान ने बनाया है और ये आपको हाथ से ही बनानी पड़ेगी.

चाहे गांव हो शहर हो हर जगह लोग बांसुरी सुनना पसंद करते हैं. स्कूलों में कॉलेजों में लोग इसका आनंद उठाते हैं.

अगर भारत के शास्त्रीय कलाकारों की बात करें तो कौन से ऐसे कलाकार हैं जिन्हें आप बहुत पसंद करते हैं?

भारत के जितने भी शास्त्रीय कलाकार हैं मैं उन सबको पसंद करता हूं. मेरा मानना है कि जितने संगीत के पुजारी भारत में मिलेंगे उतने आपको दुनिया में कहीं और नहीं मिलेंगे. आज भी भारत का संगीत विदेशियों को भी अपने काबू में कर लेता है और उतना ही नहीं, यही उन्हें भारत आने को मजबूर करता है और फिर यहां आकर वो यहां के खान पान से लेकर, शादियां करने के तरीके को भी अपनाते हुए दिखते हैं.

आपने कुछ हिंदी फिल्मों में संगीत दिया है, कैसा अनुभव रहा है?

बड़ा दिलचस्प अनुभव रहा है. फ़िल्म इंडस्ट्री में हमें काफ़ी कुछ सीखने को मिला है. फ़िल्मों के श्रोता शास्त्रीय संगीत के श्रोताओं से से बिल्कुल अलग होते हैं या वो ऐसे श्रोता नहीं होते जो ठुमरी पसंद करते हैं या कव्वाली. फ़िल्म का संगीत कहानी के अनुसार आगे बढता है, मैने कुछ 15 सोलह फ़िल्मों में संगीत दिया है.

ये बताइए कि आपके प्रशंसकों को भविष्य में आपसे किस तरह की उम्मीद रखनी चाहिए?

(हंसते हुए) देखिए मैं कोई दूसरा व्यवसाय तो कर नहीं सकता. न ही मुझे नेता या अभिनेता बनना है. मैं दूसरा कोई भी काम नहीं कर सकता. संगीत के साथ मैं जुड़ा हूं, ये मेरा व्यवसाय नहीं है ये मेरा धर्म है. तो मैं आगे भी इसी के जरिए लोगों की सेवा करता रहूंगा.

 
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