कालबेलिया नृत्य

किसी भी आनंदप्रद अवसर पर किया जाने वाला कालबेलिया नृत्य इस जनजाति की संस्कृति का अभिन्न अंग है। यह नृत्य और इस से जुड़े गीत इनकी जनजाति के लिए अत्यंत गौरव की विषय हैं। यह नृत्य संपेरो की एक प्रजाति द्वारा बदलते हुए सामाजिक-आर्थिक परस्थितियों के प्रति रचनात्मक अनुकूलन का एक शानदार उदाहरण है। यह राजस्थान के ग्रामीण परिवेश में इस जनजाति के स्थान की भी व्याख्या करता है। प्रमुख नर्तक आम तौर पर महिलाएँ होती हैं जो काले घाघरे पहन कर साँप के गतिविधियों की नकल करते हुए नाचती और चक्कर मारती है। शरीर के उपरी भाग में पहने जाने वाला वस्त्र अंगरखा कहलाता है, सिर को ऊपर से ओढनी द्वारा ढँका जाता है और निचले भाग में एक लहंगा पहना जाता है।

यह सभी वस्त्र काले और लाल रंग के संयोजन से बने होते हैं और इन पर इस तरह की कशीदाकारी होती है कि जब नर्तक नृत्य की प्रस्तुति करते हैं तो यह दर्शकों के आँखो के साथ-साथ पूरे परिवेश को एक शांतिदायक अनुभव प्रदान करते हैं।

पुरुष सदस्य इस प्रदर्शन के संगीत पक्ष की ज़िम्मेदारी उठाते हैं। वे नर्तकों के नृत्य प्रदर्शन में सहायता के लिए कई तरह के वाद्य यंत्र जैसे कि पुँगी (फूँक कर बजाया जाने वाला काठ से बना वाद्य यंत्र जिसे परंपरागत रूप से साँप को पकड़ने के लिए बजाया जाता है), डफली, खंजरी, मोरचंग, खुरालिओ और ढोलक आदि की सहायता से धुन तैयार करते हैं। नर्तकों के शरीर पर परंपरागत गोदना बना होता है और वे चाँदी के गहने तथा छोटे-छोटे शीशों और चाँदी के धागों की मीनकारी वाले परिधान पहनती हैं। प्रदर्शन जैसे-जैसे आगे बढ़ता है धुन तेज होती जाती है और साथ ही नर्तकों के नृत्य की थाप भी.

कालबेलिया नृत्य के गीत आम तौर पर लोककथा और पौराणिक कथाओं पर आधारित होते हैं और होली के अवसर पर विशेष नृत्य किया जाता है। कालबेलिया जनजाति प्रदर्शन के दौरान ही स्वतः स्फूर्त रूप से गीतों की रचना और अपने नृत्यों में इन गीतों के अनुसार बदलाव करने के लिए ख्यात हैं। ये गीत और नृत्य मौखिक प्रथा के अनुसार पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होते हैं और इनका ना तो कोई लिखित विधान है ना कोई प्रशिक्षण नियमावली. २०१० में यूनेस्को द्वारा कालबेलिया नृत्य को अमूर्त विरासत सूची में शामिल करने की घोषणा की गयी।

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जनजातीय और लोक संगीत

जनजातीय और लोक संगीत

जनजातीय और लोक संगीत उस तरीके से नहीं सिखाया जाता है जिस तरीके से भारतीय शास्‍त्रीय संगीत सिखाया जाता है । प्रशिक्षण की कोई औपचारिक अवधि नहीं है। छात्र अपना पूरा जीवन संगीत सीखने में अर्पित करने में समर्थ होते हैं । ग्रामीण जीवन का अर्थशास्‍त्र इस प्रकार की बात के लिए अनुमति नहीं देता । संगीत अभ्‍यासकर्ताओं को शिकार करने, कृषि अथवा अपने चुने हुए किसी भी प्रकार का जीविका उपार्जन कार्य करने की इजाजत है। Read More : जनजातीय और लोक संगीत about जनजातीय और लोक संगीत

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