स्वर धैवत का शास्त्रीय परिचय

स्वर धैवत का शास्त्रीय परिचय

नारद पुराण में धैवत स्वर द्वारा असुर, निषाद व भूतग्राम के तृप्त होने का उल्लेख है। यहां भूतग्राम से तात्पर्य हमारे पूर्व जन्म के संस्कारों से हो सकता है। यदि धैवत शब्द का वास्तविक रूप दैवत हो तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इसका अर्थ होगा कि धैवत स्वर में पुरुषार्थ का अभाव है, केवल कृपा, दैव शेष है। प्रथम स्थिति में धैवत/दैवत स्वर का रस भयानक या बीभत्स कहा जाएगा और दैवकृपा प्राप्त होने पर यह करुण रस बन जाएगा।

     नारदीय शिक्षा में धैवत स्वर के देवता के रूप में ह्रास-वृद्धि वाले सोम का उल्लेख है। अध्यात्म में, वृद्धि-ह्रास हमारे चेतन-अचेतन मन में हो सकता है। Read More : स्वर धैवत का शास्त्रीय परिचय about स्वर धैवत का शास्त्रीय परिचय

बालमुरलीकृष्ण ने कर्नाटक शास्त्रीय संगीत और फिल्म संगीत

 बालमुरलीकृष्ण ने कर्नाटक शास्त्रीय संगीत और फिल्म संगीत

चार दशकों तक अपने संगीत सागर में श्रोताओं को डुबकी लगवाने वाले बालमुरलीकृष्ण ने कर्नाटक शास्त्रीय संगीत और फिल्म संगीत- दोनों जगह अपनी धाक जमाई। Read More : बालमुरलीकृष्ण ने कर्नाटक शास्त्रीय संगीत और फिल्म संगीत about बालमुरलीकृष्ण ने कर्नाटक शास्त्रीय संगीत और फिल्म संगीत

संगीत के स्वर

संगीत के स्वर

श्रीमती विमला मुसलगाँवकर की पुस्तक ‘भारतीय संगीत शास्त्र का दर्शनपरक अनुशीलन’ में पृष्ठ १३९ पर उल्लेख है कि विशुद्धि चक्र की स्थिति कण्ठ में है। यह सोलह दल वाला होता है। यह भारती देवी(सरस्वती) का स्थान है। इसके पूर्वादि दिशाओं वाले दलों पर ध्यान का फल क्रमशः १-प्रणव, २-उद्गीथ, ३-हुंफट्, ४- वषट्, ५-स्वधा(पितरों के हेतु), ६-स्वाहा(देवताओं के हेतु), ७-नमः, ८-अमृत, ९-षड्ज, १०-ऋषभ, ११-गान्धार, १२-मध्यम, १३-पञ्चम, १४- धैवत, १५-निषाद, १६-विष – ये सोलह फल होते हैं—

कण्ठेऽस्ति भारतीस्थानं विशुद्धिः षोडशच्छदम्॥

तत्र प्रणव उद्गीथो हुंफड्वषडथ स्वधा॥ Read More : संगीत के स्वर about संगीत के स्वर

भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है भारतीय शास्त्रीय संगीत।

भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है भारतीय शास्त्रीय संगीत।

भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है भारतीय शास्त्रीय संगीत। आज से लगभग ३००० वर्ष पूर्व रचे गए वेदों को संगीत का मूल स्रोत माना जाता है। ऐसा मानना है कि ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को संगीत वरदान में दिया था। चारों वेदों में, सामवेद के मंत्रों का उच्चारण उस समय के वैदिक सप्तक या समगान के अनुसार सातों स्वरों के प्रयोग के साथ किया जाता था।
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गले में सूजन, पीड़ा, खुश्की

गले में सूजन, पीड़ा, खुश्की

अक्सर ज्यादा धूम्रपान करने (बीड़ी, सिगरेट पीने से), शराब पीने, खाने में ठंडी चीजे खाने से, ठंडी चीजों के खाने के बाद तुरंत ही गर्म चीजें खाने से, पेट में बहुत ज्यादा कब्ज रहने से, कच्चे फल खाने या फिर नाक तथा गला खराब करने वाली चीजों को सूंघने से, अम्लीय (खट्टे) चीजों को खाने से या ज्यादा देर तक बातें करने के कारण गले में खराबी आ जाती है जिससे गले में सूजन, दर्द, खुश्की तथा थूक निगलने में परेशानी या गला बैठ जाना आदि रोग पैदा हो जाते हैं।

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क्या अलग था गिरिजा देवी की गायकी में

क्या अलग था गिरिजा देवी की गायकी में

ठुमरी, टप्पा, भजन और खयाल इत्यादि सब कुछ पर समान अधिकार होने के अलावा उनकी अकृत्रिम सुमधुर आवाज़, भरपूर तैयारी और भक्ति भावना से ओत-प्रोत प्रस्तुतिकरण उन्हें अविस्मरणीय बनाता था. खुद भाव प्रमण होकर शब्दों से खेलना और उसके माध्यम रुलाना हँसाना उन्हें खूब आता था.

वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ भट्टाचार्य बताते हैं, 'मैंने 1970 से लेकर 2017 तक लगातार, बनारस में हुए उनके हर कार्यक्रम को सुना है और मुझे यह कहने में कोई गुरेज़ नहीं कि उनकी ख्याल गायकी में चारों वाणी सुनाई देती थी. अतिविलम्बित, दीर्घविलम्बित, मध्यविलम्बित और अंत में तेज़ तान के साथ जाती थी. Read More : क्या अलग था गिरिजा देवी की गायकी में about क्या अलग था गिरिजा देवी की गायकी में

हारमोनियम के गुण और दोष

हारमोनियम के गुण और दोष

हारमोनियम में गुण और दोष दोनों पाए जाते हैं दोनों का विवेचन इस प्रकार किया जा सकता है Read More : हारमोनियम के गुण और दोष about हारमोनियम के गुण और दोष

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