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मणिपुर क्षेत्र से आया शास्त्रीय नृत्य मणिपुरी नृत्य है
Submitted by Anand on 12 March 2020 - 12:47amपूर्वोत्तर के मणिपुर क्षेत्र से आया शास्त्रीय नृत्य मणिपुरी नृत्य है।
* मणिपुरी नृत्य भारत के अन्य नृत्य रूपों से भिन्न है।
* इसमें शरीर धीमी गति से चलता है, सांकेतिक भव्यता और मनमोहक गति से भुजाएँ अंगुलियों तक प्रवाहित होती हैं।
* यह नृत्य रूप 18वीं शताब्दी में वैष्णव सम्प्रदाय के साथ विकसित हुआ जो इसके शुरूआती रीति रिवाज और जादुई नृत्य रूपों में से बना है।
* विष्णु पुराण, भागवत पुराण तथा गीत गोविंदम की रचनाओं से आई विषयवस्तुएँ इसमें प्रमुख रूप से उपयोग की जाती हैं।
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कथक नृत्य― उत्तर भारत
Submitted by Anand on 12 March 2020 - 12:43amकथक का नृत्य रूप 100 से अधिक घुंघरुओं को पैरों में बांध कर तालबद्ध पदचाप, विहंगम चक्कर द्वारा पहचाना जाता है और हिन्दु धार्मिक कथाओं के अलावा पर्शियन और उर्दू कविता से ली गई विषयवस्तुओं का नाटकीय प्रस्तुतीकरण किया जाता है।
* कथक का जन्म उत्तर में हुआ किन्तु पर्शियन और मुस्लिम प्रभाव से यह मंदिर की रीति से दरबारी मनोरंजन तक पहुंच गया।
* इस नृत्य परम्परा के दो प्रमुख घराने हैं, इन दोनों को उत्तर भारत के शहरों के नाम पर नाम दिया गया है और इनमें से दोनों ही क्षेत्रीय राजाओं के संरक्षण में विस्तारित हुआ - लखनऊ घराना और जयपुरघराना।
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भारतीय शास्त्रीय नृत्य
Submitted by Anand on 10 March 2020 - 9:51pmसाहित्य में पहला संदर्भ वेदों से मिलता है, जहां नृत्य व संगीत का उदगम है । नृत्य का एक ज्यादा संयोजित इतिहास महाकाव्यों, अनेक पुराण, कवित्व साहित्य तथा नाटकों का समृद्ध कोष, जो संस्कृत में काव्य और नाटक के रूप में जाने जाते हैं, से पुनर्निर्मित किया जा सकता है । शास्त्रीय संस्कृत नाटक (ड्रामा) का विकास एक वर्णित विकास है, जो मुखरित शब्द, मुद्राओं और आकृति, ऐतिहासिक वर्णन, संगीत तथा शैलीगत गतिविधि का एक सम्मिश्रण है । यहां 12वीं सदी से 19वीं सदी तक अनेक प्रादेशिक रूप हैं, जिन्हें संगीतात्मक खेल या संगीत-नाटक कहा जाता है । संगीतात्मक खेलों में से वर्तमान शास्त्रीय नृत्य-रूपों Read More : भारतीय शास्त्रीय नृत्य about भारतीय शास्त्रीय नृत्य
जनजातीय और लोक संगीत
Submitted by Anand on 10 March 2020 - 9:50pmजनजातीय और लोक संगीत उस तरीके से नहीं सिखाया जाता है जिस तरीके से भारतीय शास्त्रीय संगीत सिखाया जाता है । प्रशिक्षण की कोई औपचारिक अवधि नहीं है। छात्र अपना पूरा जीवन संगीत सीखने में अर्पित करने में समर्थ होते हैं । ग्रामीण जीवन का अर्थशास्त्र इस प्रकार की बात के लिए अनुमति नहीं देता । संगीत अभ्यासकर्ताओं को शिकार करने, कृषि अथवा अपने चुने हुए किसी भी प्रकार का जीविका उपार्जन कार्य करने की इजाजत है। Read More : जनजातीय और लोक संगीत about जनजातीय और लोक संगीत
एक ही गीत विभिन्न राग में : अनुजा कामत
Submitted by raagparichay on 10 March 2020 - 12:02amप्रवीण संगीताचार्य (VIII Year) - कत्थक (मंच प्रदर्शन पाठ्यक्रम ) मंच प्रदर्शन
Submitted by raagparichay on 9 March 2020 - 1:46pm1. मंच प्रदर्शन में निम्न पांच तालों परीक्षार्थी को उनकी इच्छानुसार किन्हीं भी दो तालों में कम.से.कम आधा घंटा पूर्ण तैयारी के साथ अपनी सम्पूर्ण नृत्य कला का प्रदर्शन करना होगा। तत्पश्चात, तीनताल में अधिक.से.अधिक 20 मिनट तक पूर्ण तैयारी के साथ नृत्य करना होगा - बसंत ताल (नौ मात्रा), कुम्भ अथवा चन्द्रमणि ताल (11 मात्रा), जैमंगल अथवा मष्ठिका ताल (13 मात्रा), आड़ा चारताल (14 मात्रा), पंचम सवारी (15 मात्रा)।
2. परीक्षक को अधिकार होगा कि यदि वे चाहें तो निर्धारित समय से पूर्व भी परीक्षार्थी का नृत्य समाप्त करा सकते हैं।
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