नाट्य शास्त्रानुसार नृतः, नृत्य, और नाट्य में तीन पक्ष हैं –

नृतः केवल नृत्य है जिस में शारीरिक मुद्राओं का कलात्मिक प्रदर्शन है किन्तु उन में किसी भाव का होना आवश्यक नहीं। यही आजकल का ऐरोबिक नृत्य है।
नृत्य में भाव-दर्शन की प्रधानता है जिस में चेहरे, भंगिमाओं तथा मुद्राओं का प्रयोग किया जाता है।
नाट्य में शब्दों और वार्तालाप तथा संवाद को भी शामिल किया जाता है।
भारत में कई शास्त्रीय नृत्य की की शैलियाँ हैं जिन में ‘भरत-नाट्यम’, ‘कथक’, ‘कथकली’, ‘मणिपुरी’, ‘कुचीपुडी’ मुख्य हैं लेकिन उन सब का विस्तरित वर्णन यहाँ प्रसंगिक नहीं। Read More : नाट्य शास्त्रानुसार नृतः, नृत्य, और नाट्य में तीन पक्ष हैं – about नाट्य शास्त्रानुसार नृतः, नृत्य, और नाट्य में तीन पक्ष हैं –

षडजांतर | शास्त्रीय संगीत के जाति लक्षण क्यां है

भारत में शास्त्रीय संगीत की परंपरा बड़ी प्राचीन है। राग के प्रादुर्भाव के पूर्व जाति गान की परंपरा थी जो वैदिक परंपरा का ही भेद था। जाति गान के बारे में मतंग मुनि कहते हैं –

“श्रुतिग्रहस्वरादिसमूहाज्जायन्त इति जातय:”

अर्थात् – श्रुति और ग्रह- स्वरादि के समूह से जो जन्म पाती है उन्हें ‘जाति’ कहा है। Read More : षडजांतर | शास्त्रीय संगीत के जाति लक्षण क्यां है about षडजांतर | शास्त्रीय संगीत के जाति लक्षण क्यां है

स्वर और उनसे सम्बद्ध श्रुतियां

स्वर और उनसे सम्बद्ध श्रुतियां

स्वर

श्रुति

स्वर

श्रुति

 

तीव्रा

 

वज्रिका

 

कुमुद्वती

 

प्रसारिणी

 

मन्द्रा

 

प्रीति

सा

छन्दोवती

जयपुर- अतरौली घराने की देन हैं एक से बढ़कर एक कलाकार

शास्त्रीय संगीत की दुनिया में मल्लिकार्जुन मंसूर, केसरबाई, किशोरी अमोनकर, श्रुति साडोलकर, पद्मा तलवलकर और अश्विनी भीड़े देशपांडे जैसे नामचीन कलाकारों की क्या कद है, ये बताने की जरूरत नहीं है. ये सभी कलाकार अतरौली घराने के हैं.

इस घराने की शुरुआत महान कलाकार अल्लादिया खान ने की थी. इस घराने की गायकी को कठिन इसलिए भी माना जाता है क्योंकि इसमें वक्र स्वर समूहों को प्रस्तुत किया जाता है. आपको हाल ही में अपने लाखों चाहने वालों को अलविदा कह गईं किशोरी ताई की गायकी सुनाते हैं. Read More : जयपुर- अतरौली घराने की देन हैं एक से बढ़कर एक कलाकार about जयपुर- अतरौली घराने की देन हैं एक से बढ़कर एक कलाकार

'संगीत के माध्यम से सेवा करता रहूंगा'

जब कभी बांसुरी की चर्चा होती है, तब पंडित हरि प्रसाद चौरसिया का नाम बरबस ही लोगों की जुबान पर आता है. भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी उनकी बांसुरी वादन को सराहने वाले मौजूद हैं.

हरि प्रसाद जी की जीवन गाथा भी ऐसी है जिससे दूसरों को काफ़ी प्रेरणा मिल सकती है.

इलाहाबाद में जन्मे हरि प्रसाद जी के पिता पहलवान थे और चाहते थे कि उनका बेटा भी पहलवानी ही करे. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, बेटे को बांसुरी से प्यार हो गया.

बांसुरी के उसी प्यार ने बाद में उन्हें ऐसी प्रसिद्धि दिलाई कि वो आज भारत की महान विभूतियों में शामिल हैं. हाल में उनसे हुई बातचीत के अंश. Read More : 'संगीत के माध्यम से सेवा करता रहूंगा' about 'संगीत के माध्यम से सेवा करता रहूंगा'

शास्त्रीय गायिका गंगूबाई

भारतीय शास्त्रीय संगीत की सुप्रसिद्ध गायिका गंगूबाई हंगल का जुलाई 2009 में निधन हो गया. वे 97 वर्ष की थीं और हृदय रोग से पीड़ित थीं.

उन्होंने 50 साल से अधिक समय तक संगीत की सेवा की और इस दौरान भारतीय शास्त्रीय संगीत को नई ऊँचाई तक पहुँचाया.

वर्ष 1913 में कर्नाटक के एक गाँव हंगल में जन्मी गंगूबाई को उनकी माँ ने सुर की शुरूआती शिक्षा दी थी. बाद में उन्होंने संगीत की शिक्षा 'किराना घराने' के गुरू सवाई गंधर्व से ली.

गंगूबाई ने अपनी कला के प्रदर्शन की शुरुआत किशोरावस्था में मुंबई में स्थानीय समारोहों और गणेश उत्सवों में गायकी से की थी. Read More : शास्त्रीय गायिका गंगूबाई about शास्त्रीय गायिका गंगूबाई

Pages

Search engine adsence